Tuesday, July 30, 2013

राजेश खन्ना, किशोर कुमार और महंमद रफी!



इस साल १८ जुलाई को राजेश खन्ना की प्रथम पूण्यतिथि पर जिस किसी भी मिडीया में उन्हें श्रद्धांजलि दी, हर जगह ‘काका’ की फिल्मों के गाने याद करते समय किशोर कुमार के गाये गीत ही ज्यादा बजे और यह स्वाभाविक भी तो था. क्योंकि राजेश खन्ना और किशोर कुमार एक दुसरे के पूरक कलाकार थे. दोनों के करियर का सूरज सच्चे अर्थ में एक दुसरे के साथ मिलकर काम करने से ज्यादा चमका था.आराधना’ से मची इन दोनों की धूम जैसे कहीं ठहरी ही नहीं! 

आराधना’ के संगीत सर्जन के दौरान एस. डी. बर्मन की बिमारी के चलते उन के सहायक बेटे आर.डी. बर्मन ने किशोर कुमार से गाने गवाने में जो सक्रीय भूमिका अदा की थी, उस पर काफी कुछ लिखा जा चूका है. ये भी पढने में आया था कि पंचम ने किशोर दा के नाम का प्रस्ताव किया उसे खुद दादा बर्मन ने भी मंजूर किया था. इस लिये अकेले राहूल बाबा को क्रेडिट देना ठीक नहीं होगा.

जो भी हो. अंतत: हकीकत तो ये ही हुई कि आराधना’ से किशोर कुमार का बतौर गायक एक नया जन्म हुआ तथा राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार को भी अपनी एक अलग आवाज़ मिली. वो भी एक ऐसी आवाज़ जो किसी ज़माने में देव आनंद जैसे लडकीओं के प्रिय अभिनेता का स्वर हुआ करता था. इस में दोनों ही कलाकारों का हित था. खन्ना के लिये देव साहब के नक्शे कदम पर चलते दिखकर युवा महिलाओं में अपनी जगह बनाना आसान हो रहा था.


जब कि किशोर कुमार को नये ज़माने के युवा स्टार की आवाज़ बनने का मौका मिल रहा था. यहां एक और बात का उल्लेख भी आवश्यक है; कि सचिन दा ने देव आनंद के लिये किशोर कुमार के स्वर का उपयोग काफी समय से बंद हो कर दिया था. किशोर कुमार ने अपनी पहली पत्नी  से अलग होकर मधुबाला से शादी की उस के बाद के समय में दादा बर्मन ने जैसे किशोर दा का बहिष्कार किया था.

वरना क्या कारण हो सकता है कि जिस गायक के साथ ‘चलती का नाम गाडी’ जैसा सुपर हीट एल्बम दिया हो उस के साथ फिर कई साल तक कोई पिक्चर ही न हों? खास कर देव आनंद के लिये? उन के लिये पहले एक से अधिक फिल्मों में जिन्हों ने किशोर कुमार की आवाज़ ली थी, वही बर्मन दादा अब एक दो नहीं इतनी सारी देव आनंद की पिक्चरों में किशोर कुमार को एक भी गाना नहीं दे रहे थे.... सुची तो देखिये? ‘काला पानी’, ‘सोलवां साल’, ‘काला बाज़ार’, ‘मंझिल’, ‘बात एक रात की’, ‘तेरे घर के सामने’, ‘एक के बाद एक’ और ‘बम्बई का बाबु’.


देव साहब की इतनी सारी फिल्मों के गानों में  किशोर कुमार के लिये सचिन दा के पास एक भी गीत नहीं था!  हालांकि ‘आराधना’ के पहले ‘गाईड’ औरतीन देवीयां’ में किशोर को गाने जरूर मिले थे. मगर अब राजेश खन्ना से जुडने से वे किसी एक संगीतकार के मोहताज न रहकर एक स्टार की आवाज़ बन रहे थे. फिर जो हुआ वह इतिहास है. राजेश खन्ना, किशोर कुमार और राहूल देव बर्मन की जो त्रिवेणी बनी, उस से कैसे कैसे बेमिसाल गाने बहे?


“मेरे सपनों की रानी...” और “रूप तेरा मस्ताना...” से प्रारंभ हुई इस यात्रा के बारे में काफी कुछ लिखा जा चूका है और शायद कोई चाहे तो उस पर डोक्टरेट भी कर सके इतनी सारी अच्छी कृतियां इन तीनों ने मिलकर दी हैं. उन में “चिनगारी कोई भडके... (अमरप्रेम), “मैं शायर बदनाम...” (नमक हराम), “दीवाना लेके आया है...” (मेरे जीवन साथी) और “ये जो मोहब्बत है....”(कटी पतंग) जैसे सोलो और “हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड चले...” से लेकर “करवटें बदलते रहें सारी रात हम....” जैसे युगल गीत शामिल हैं.
 
इस लिये उस खज़ाने को याद करना स्वाभाविक भी है. मगर हम आज उस लीक से हटकर राजेश खन्ना और मोहम्मद रफी के गानों को याद करने की कोशीश करेंगे; क्यूं कि इस हफ्ते ३१ जुलाई को रफी साहब की पूण्यतिथि भी है. यह करने का एक कारण ये भी है कि हर बात में विवाद ढूंढने के आदी लोग रफी और किशोर कुमार के बीच में कोई खींचातानी होने की कल्पनाएं सालों चलाते रहे थे. उन सब के मुंह तब से बंद हो गये हैं जब से लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल वाले प्यारे जी ने एक मुलाकात में सार्वजनिक रूप से कही है.


प्यारे भैया ने कहा है कि राजेश खन्ना पर फिल्माया जानेवाला ‘दुश्मन’ का कव्वालीनूमा गाना “वादा तेरा वादा...” गाने के लिये जब किशोर दा से कहा गया था, तब उन्हों ने कहा था कि इस के लिये रफी साहब ही योग्य गायक हैं. उन से गवाइये. अंततः राजेश खन्ना ने गाने को फिल्म से निकाल देने की बात कही, तब किशोर कुमार ने गाया और ये किशोर कुमार की टेलेन्ट का ही परिणाम है कि आज उस कव्वाली को रफी की आवाज़ में सोचा भी नहीं जा सकता!  

मगर राजेश खन्ना की प्रथम फिल्म ‘आखरी खत’ में “और कुछ देर ठहर, और कुछ देर न जा...” तथा खन्ना की पहली कलर पिक्चर ‘राज़’ में “अकेले हैं चले आओ, जहां हो....” दोनों में रफी साहब की आवाज़ थी. और तो और खुद राहूल देव बर्मन ने भी तो राजेश खन्ना के लिये ‘धी ट्रेइन’ में “गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं...” गाने के लिये रफी की आवाज़ ली थी. अरे, ‘आराधना’ में भी “गुन गुना रहे हैं भंवरे..” तथा “बागों में बहार है?....” जैसे दो दो युगल गान महंमद रफी की आवाज़ में थे. 


इसी तरह से कल्याणजी आणंदजी ने भी ‘सच्चा झुठा’ में “यूं ही तुम मुझ से बात करती हो....” तथा ‘छोटी बहू’ में “ये रात है प्यासी प्यासी.....” में रफी को ही लिया था. स्मरण रहे, ये दोनों ही फिल्में ‘आराधना’ के बाद की थी. (हालांकि ‘सच्चा झुठा’ का किशोर कुमार का गाया “मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया....” ज्यादा लोकप्रिय हुआ था.) तो ‘आराधना’ के दिनों में ही आई ‘दो रास्ते’ में लक्ष्मी-प्यारे ने “ये रेश्मी ज़ुल्फें, ये शरबती आंखें....” और “छुप गये सारे नज़ारे ओय क्या बात हो गई....” रफी की आवाज़ में दिये थे और लोकप्रिय भी इतने ही हुए थे.


उन्ही ‘एल.पी.’ ने ‘मेहबूब की मेहंदी’ के लिये “इतना तो याद है मुझे....” तथा “ये जो चिल्मन है, दुश्मन है हमारी...” महंमद रफी जी से गवाये थे. उसी जोडी ने ‘आन मिलो सजना’ के लिये “कोई नज़राना ले कर आया हूं मैं दीवाना तेरे लिये...” भी रफी साहब के लिये रखा था. इन दोनों फिल्मों में क्रमश: “मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं....” और “यहां वहां सारे जहां में तेरा राज है, जवानी ओ दीवानी तु ज़िन्दाबाद...” में लक्ष्मी - प्यारे ने किशोर कुमार का स्वर लिया था.

अंत में रफी और राजेश की जोडी के मेल का जो सब से अच्छा उदाहरण ‘हाथी मेरे साथी’ के अंतिम गीत में सुनने को मिला था, उसे याद करेंगे. ये गाना काफी जगहों पर ‘काका’ को श्रध्धांजलि के रूप में लिया गया था और हम भी आज उन के लिये वही कहेंगे.... “नफरत की दुनिया को छोडके, प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरे यार!”

 

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