Wednesday, October 30, 2013

ये आज भी ज़िन्दा ही हैं.... अनवर हुसैन




अनवर हुसैन....

अपनी अलग पहचान वाले एक जाने माने ‘रिश्तेदार’! 



अनवर हुसैन की पहचान संजय दत्त के मामा, सुनिलदत्त के साले साहब या नरगीस के भाई या फिर अभिनेत्री ज़ाहिदा के चाचा जैसे कितने ही रिश्तों से की जा सकती है। मगर वे सभी उस कलाकार के साथ अन्याय करने जैसी पहचान होगी। क्योंकि अनवर हुसैन माता जदनबाई के पुत्र होने के अलावा एक ऐसे अभिनेता भी थे, जो सहनायक के रूप में जितने अच्छे से सकारात्मक भूमिकाएं करते थे, उतने ही वे खलनायकी में माहिर थे। याद करें दिलीप कुमार की श्रेष्ठतम फ़िल्म ‘गंगा जमुना’ में ज़मीनदार अय्याश साला बने अनवर हुसैन का रूप दर्शकों को कितना गुस्सा दिलाता था! अनवर हुसैन के अभिनय के कारण दिलीप कुमार का डाकु बनना ज्यादा सही लगता है।



वही अनवर हुसैन देव आनंद की श्रेष्ठतम कृति ‘गाइड’ में उनके ड्रायवर दोस्त ‘गफ़ुर’ के रोल में कितना सकारात्मक रोल निभा गए थे! ‘राजु गाइड’ से ‘राजु स्वामी’ बने अपने बिछडे दोस्त से मिलकर जिस अंदाज़ में वे बेतहाशा रोते हैं और अंत में उपवास पर बैठे उसी मित्र के स्वास्थ्य के लिए मंदिर में नमाज़ पढते, दुआ मांगते अनवर हुसैन भूले नहीं भूलाते। उन्हीं अनवर को राजेश खन्ना की एक बेहतरीन फ़िल्म ‘बहारों के सपने’ में आशा पारेख के साथ  “चुनरी संभाल गोरी, उडी चली जाय रे....” गाते देखो तो अपनी बीवी से छुपकर नियमित शराब पीनेवाले एक मौजीले पात्र में भी वे उतने ही जंचते थे। 




मगर अनवर हुसैन हमेशा से चरित्र अभिनेता कहाँ थे? अन्य चरित्र अभिनेताओं की तरह वे भी कभी हीरो थे! उन्हें चान्स भी दिया था ए.आर. कारदार जैसे बडे निर्माता ने ‘संजोग’ में। उन दिनों अनवर ऑल इन्डिया रेडियो में बतौर उद्घोषक काम करते थे। उनकी आवाज़ का दम देखकर, सॉरी.... सुनकर, कारदार साहबने अनवर को ‘संजोग’ का हीरो बनाया। परंतु, सिनेमा का पर्दा अनवर के लिए नया नहीं था। वे बाल कलाकार के रूप में माता जदनबाई के कारण कुछ फ़िल्मों में आ चुके थे। ‘संजोग’ उपरांत भी दो-तीन फ़िल्में बतौर नायक आईं जरूर। मगर हीरो बनने के लिए चेहरा और विशेष तो टिकट खिडकी पर तकदीर भी तो चाहिए! अनवर हुसैन के पास उस समय दोनों नहीं थे, जिसका सबुत ‘रंगमहल’ नामक फ़िल्म थी। 

‘रंगमहल’ वो फ़िल्म थी, जिस में अनवर हुसैन ने पहली बार खलनायक बनना स्वीकार किया था। हीरो नहीं तो विलन ही सही! लेकिन जब आप की किस्मत साथ नहीं देती तब आपको सोने की खान से भी कोयला मिल सकता है। अनवर हुसैन को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने वाली प्रथम फ़िल्म ‘रंगमहल’ भी जलकर कोयला हो गई। ‘रंगमहल’ की नेगेटिव लेबोरेटरी में आग लगने की वजह से जल गई। फ़िल्म आई ही नहीं। वरना ‘रंगमहल’ की नायिका भी तो सुरैया जैसी बडी अभिनेत्री थी। नसीब के सामने हथियार रखते हुए अनवर भोपाल चले गए।

भोपाल में उन्होंने घी का व्यापार करना प्रारंभ किया। पर नसीब ने उस में भी साथ नहीं दिया। उसे छोड कपडे का व्यवसाय किया तो वहाँ भी घाटा आया। भोपाल में कमाना तो दूर की बात थी, अपनी जमा पूंजी को अनवर कम कर रहे थे। इस से तो बम्बई अच्छा था कि अभिनेता के तौर पर पैसे तो लगाने नहीं पडते थे। जो भी मेहनताना मिलता था, वो अपना होता था। फिर माता और भाई भी तो थे। वापिस आये मुंबई जहाँ उनके भाई अखतर हुसैन ‘रोमियो जुलियट’ बना रहे थे। उसमें अनवर हुसैन को लिया गया। मगर किन हालात में?

रोमियो जुलियट’ में अंततः अनवर को मिली भूमिका के लिए पहले अन्य अभिनेता याकुब को लिया गया था। परंतु, वे बीमार हो गए और एक्टर मज़हर खान उस पात्र में साइन हुए। (ये ज़िन्नत अमान के पति नहीं, पुराने समय के अन्य कलाकार मज़हर खान थे।) अब पलटती तकदीर का खेल देखिए कि ऐन वक्त पर शुटिंग के लिए मज़हर भी नहीं आ पाये। परिणाम स्वरूप परिवार के लडके अनवर को अभिनेता का काम मिला। ‘रोमियो जुलियट’ में तलवारबाजी के भी द्दश्य थे। अनवर ने उसकी  बाकायदा तालीम ली और उन सीन्स को भी बखुबी किया। नतीजा ये हुआ कि ‘रोमियो जुलियट’ के लिए उस साल पत्रकारों की एक संस्था की तरफ से अनवर हुसैन को सम्मान मिला।

‘रोमियो जुलियट’ से अभिनय की यात्रा जो फिर से शुरु हुई वो अंत तक बरकरार रही। उनके पात्रों में भी विविधता थी। ‘हमराज़’ में वे आर्मी के कैप्टन (महेन्द्र सिंग) बने थे, तो ‘नन्हा फरिश्ता’ में प्राण और अजीत के साथ मिलकर नन्ही बच्ची को अगुवा करने वाले डाकु बने थे। ‘असली नकली’ में घर से नीकले अमीर देव आनंद को अपनी खोली में आसरा देने वाले गरीब दोस्त भी अनवर थे।
उनकी फ़िल्मों में ‘रॉकी’, ‘नौकर’, ‘रात और दिन’, ‘अनोखी रात’, ‘आदमी और इन्सान’, ‘अन्नदाता’, ‘विक्टोरिया २०३’, ‘उपासना’, ‘बलिदान’, ‘यकीन’, ‘एक बेचारा’, ‘दस्तक’, ‘जैसे को तैसा’, ‘दोस्त’, ‘गद्दार’, ‘लोफर’, ‘झील के उस पार’, ‘प्यार की कहानी’, ‘ज़िन्दगी ज़िन्दगी’, ‘बिदाई’, ‘दुश्मन’, ‘रफ़ुचक्कर’, ‘काला आदमी’, ‘शंकर शंभु’, ‘महा चोर’,  ‘चोरी मेरा काम’, ‘चोर के घर चोर’, ‘शंकर दादा’, ‘गरम मसाला’, ‘बचपन’, ‘अनपढ’, ‘एक से बढकर एक’, ‘लफंगे’, ‘गुरु हो जा शुरु’, ‘रिक्षावाला’, ‘प्रेमशास्त्र’, ‘अपना खून’, ‘हरफनमौला’, ‘राहगीर’, ‘प्रीतम’, ‘खामोशी’, ‘नई रोशनी’ इत्यादि इत्यादि। 


फ़िल्मों के साथ साथ उनका संबंध सुनिल दत्त और नरगीस की संस्था ‘अजंता आर्टस’ के साथ भी गहरा था। शायद सब को पता हो कि अनवर हुसैन और अखतर हुसैन नरगीस के सौतेले भाई थे। जदनबाई की गायकी पर फ़िदा हो कर मोहनबाबु ने इंग्लेन्ड जाकर डोकटर बनने का सपना छोडकर उस ‘गानेवाली’ से शादी करने की हिम्मत उन दिनों में की थी। शादी के लिए मोहनबाबु ने धर्म परिवर्तन कर अपना नाम ‘अब्दुल रशीद’ रख दिया था और उनके परिवारवालों ने मोहनबाबु से अपने को अलग कर दिया। नरगीस का असल नाम ‘फातिमा अब्दुल रशीद’ इसी वजह से था।
नरगीस के लिए उनके दोनों सौतेले भाइओं में से अनवर हुसैन का मेलजोल कितना अच्छा था ये सुनिल दत्त के साथ उनकी हुई शादी के समय भी पता चला था। नरगीस की जीवनकथा लिखने वाले टी.जे.एस. ज्योर्ज के मुताबिक, जब नरगीस और सुनिल दत्त ने आर्य समाज में सादगी से शादी कर ली, तब सबसे पहले वे दोनों हुसैन भाईओं से मिलने गए थे। उस वक्त नाराज़ अख्तर हुसैन ने ‘देर रात हो गई है’ ये कहकर नवदंपति को मिलने से इनकार कर दिया था। जब कि अनवर ने न सिर्फ आशीर्वाद दिया, बल्कि उनकी आंखें खुशी के आंसुओं से भर गईं थीं।


अनवर हुसैन दत्त परिवार और ‘अजंता’ से इतने अच्छे से जुडे थे कि उनके साथ जवानों के मनोरंजन के लिए सीमा पर भी जाते थे। इन स्टेज शो में बहुधा वे कोमेडी करते थे। ऐसे एक सार्वजनिक शो में हमने उन्हें सुनिल दत्त से एक फरमाईश बडे ही अनोखे अंदाज में करते हुए देखा था। उन्होंने क्या कहा था ये तो याद नहीं है, मगर इतना जरूर याद है कि उपस्थित सारे लोग काफी देर तक हंसते रहे थे। 


उनके जवाब में सुनिल दत्त ने भी उसी हंसी-खुशी के महौल को आगे बढाते हुए कहा था, “मैं कैसे इनकार कर सकता हुँ.... एक तरफ जोरु का भाई, दुसरी तरफ सारी खुदाई!” तभी चुटकी लेते हुए अनवर बोले “दत्त साहब, हमें तो बम्बई के रोड पर आये दिन होती खुदाई के अलावा कोई खुदाई दिखती नहीं!” (आज  हर तीसरे स्टेन्ड अप कमेडियन को इस लाइन को दोहराते सुनते समय हर बार हमें तो अनवर हुसैन ही याद आते हैं।) इतने हसमुख  इन्सान को व्यस्तता के उन दिनों में लकवा का हमला हो गया। अंततः १९८८ की पहली जनवरी के दिन अनवर हुसैन का इन्तकाल हो गया। लेकिन अपनी हर तरह की एक्टींग के बावजुद अपने पारिवारिक संबंधों की वजह से ज्यादा पहचाने जाते अनवर हुसैन अपनी विविध भूमिकाओं से हम सिनेमा दर्शकों के बीच आज भी ज़िन्दा ही हैं।

 [इस लेख के लिए सहायक सामग्री प्रदान करने के लिए वरिष्ठ इतिहासविद श्री हरीश रघुवंशी (सुरत) का हार्दिक धन्यवाद]


हाथ कंगन को आरसी क्या? 

 देखीए अनवर हुसैन को एक मस्ती भरे गाने में यहाँ.... 

                           आर.डी. बर्मन की एक बेमिसाल संगीत रचना में!Click on the picture bellow to see the performance!



















Sunday, October 27, 2013

જુઓ ચરિત્ર અભિનેતા જીવનની જીવંત એક્ટિંગ.... !!

रोल नहीं, कलाकार ही छोटा या बडा होता है!

फिल्म ‘कानून’ के  इस विडीयो में जीवन साहब की सिर्फ़ सात - आठ मिनट की भूमिका में उनके  बेमिसाल अभिनय की एक झलक देखीए!

રખે ચૂકતા.... જુઓ ચરિત્ર અભિનેતા જીવનની જીવંત એક્ટિંગ....  !! હું વરસોથી કહેતો અને લખતો આવ્યો છું કે રોલ કોઇ નાનો કે મોટો નથી હોતો.... કલાકાર જ મોટા-નાના હોય છે. આ ચાર જ મિનિટનો વિડીયો જુઓ. જીવન સાહેબનો ‘કાનૂન’માં માત્ર એ કોર્ટ સીનનો પાંચ-સાત મિનિટનો જ રોલ હતો. પણ શું જબરદસ્ત અસર છોડી જાય છે એ માણસ! જો તમે અભિનેતા હો કે થવા માગતા હો તો આ મોનોલોગ તમારા ઑડિશન માટે આદર્શ નમૂનો હશે.... તમે એની નકલ કોઇ ઑડિશનમાં પ્રસ્તુત કરીને નિર્ણાયકોના દિલ જીતી શકો. એવું કશું ના કરવું હોય અને માત્ર સરસ નાટ્યાત્મક એક્ટિંગ જ જોવી હોય તો પણ આ પીસ ચૂકવા જેવો નથી.
(Yes, I did it! As promised on 100th post of my Blog I could post an edited part of character actor Jeevan's role! If you are interested in dramatized acting or if you have an audition coming up, then this can be an ideal script and performance.)



हाथ कंगन को आरसी क्या?
Click on the picture bellow to see the performance!



Saturday, October 26, 2013

ફિલમની ચિલમ...... ૨૭ ઑક્ટોબર, ૨૦૧૩


ફિલમના ધંધામાં શુક્રવાર વગર કશો શક્કરવાર નહીં!




‘ફ્રાઇડે કો ફાયદા’  અથવા “લૌટકર બુધ કે ‘બુધ્ધુ’ જુમ્મે પે આયે” એમ કહેવાય એ રીતે રિતિક રોશન, પ્રિયંકા ચોપ્રા, વિવેક ઓબેરોય અને કંગના રાનાવતને મુખ્ય ભૂમિકામાં ચમકાવતી ‘ક્રિશ-૩’ હવે પહેલી નવેમ્બરના શુક્રવારે  રિલીઝ થઈ રહી છે. જે રીતે શુક્રવારને બદલે બુધવારે રિલીઝ થયેલી બન્ને ફિલ્મો ‘બેશરમ’ અને ગયા વીકની ‘બૉસ’ ૧૦૦ કરોડ તો ઠીક ૫૦ કરોડના બિઝનેસે પણ માંડ પહોંચશે; એ હવા બંધાતાં ‘ક્રિશ-૩’ માટે અગાઉથી જાહેર થયેલો ચોથી નવેમ્બર, એટલે કે સોમવારનો દિવસ, બદલીને પહેલી નવેમ્બર જ ફાઇનલ કરી દેવાયો છે. આમ પણ રાકેશ રોશન નસીબની બાબતમાં કોઇ જોખમ ઉઠાવનારા સર્જક નથી. તેમની બધી ફિલ્મોનાં ટાઇટલ અંગ્રેજી મૂળાક્ષર ‘કે’થી શરૂ થાય એવાં રાખવાની જ્યોતિષી સલાહને તે મોટેભાગે અવગણતા નથી. (‘બેશરમ’ અને ‘બૉસ’ બન્નેની વૃષભ રાશિ છે અથવા તો તે શિર્ષકોનો પ્રથમ અક્ષર ‘બી’ છે, તેનું ગ્રહોની રીતે કોઇ રહસ્ય હશે કે?)  

બેશરમ’ અને ‘બૉસ’ એ બેઉ પિક્ચરોના મુખ્ય સ્ટાર્સ રણબીર કપૂર તથા અક્ષય કુમારના માર્કેટ રેટીંગમાં કેવોક ખાંચો પાડે છે એ પણ, ગુજરાતી ટીવીના ન્યૂઝ રીડર્સનો ગમતો શબ્દસમૂહ વાપરીને કહીએ તો, “જોવાનું રહેશે”! કેમકે ટ્રેડના જાણકારો કહે છે કે ‘બેશરમ’ માટે રણબીર કપૂરે વીસ કરોડ રૂપિયા ચાર્જ કર્યા હતા. આમ જુઓ તો રણબીર એ ‘કલ કા છોકરા’ જ કહેવાય,  જેણે જુમ્મા જુમ્મા માંડ બાર-પંદર ફિલ્મો જ આપી છે. છતાંય જો આવો તેજાબી ભાવ હોય, તો અક્ષય જેવા ખિલાડી સ્ટારનો રેટ કેવો જલદ હશે? એટલું ઓછું હોય એમ, હવે આ સ્ટાર્સ નફામાં ભાગ પણ માગતા હોય છે. ત્યારે સવાલ એ થાય કે બુધના ધુબાકા જેવા વકરા વખતે એ સૌ ‘બોસ’ રિફન્ડ આપતા હશે કે પછી ‘બેશરમ’ થઈને કપિલ શર્માની ભાષામાં “બાબાજી કા ઠુલ્લુ” કહેતા હશે?

બેશરમ’ જેવી તગડી ‘ફી’ વસુલ્યા પછી રણબીરને એવા કરોડોને ઠેકાણે પાડવાનો (અથવા તો વધારે ઉગાડવાનો!) વિચાર ના આવે તો જ નવાઇ હતી. એટલે હવે તેણે ‘બર્ફી’ના દિગ્દર્શક અનુરાગ બાસુ સાથે મળીને ‘પિક્ચર શુરુ પ્રોડક્શન’ નામની નિર્માણ સંસ્થા શુરુ કરી છે અને તેના નેજા હેઠળ ‘જગ્ગા જાસૂસ’ ફિલ્મ પણ બની રહી છે. તે પિક્ચરની હિરોઇન કોણ હશે? આ સવાલ ‘કેબીસી’માં કોઇ ઑપ્શન વગર પૂછાય તો ઑડિયન્સ પોલ જેવી મદદ સાથે કે તે વગર પણ એક જ જવાબ મળે: કટરિના! તે ‘સહી જવાબ’ હોય અને તે છે જ. 



કટરિના જ્યારે સલમાનની ગર્લફ્રેન્ડ હતી, ત્યારે કેટલાક નિર્માતાઓ તેને  પોતાની ફિલ્મમાં અન્ય હીરો સામે લેતાં પહેલાં ‘ખાન સાહેબ’ને પૂછતા. એ રીતે અત્યારે રણબીરને કોઇ વિશ્વાસમાં લેતું હશે કે નહીં એ તો કોણ જાણે. પણ આજકાલ કટરિના બૈરુતમાં સૈફઅલી ખાન સાથે જોખમી શૂટિંગમાં વ્યસ્ત છે. ના અહીં ‘છોટે નવાબ’ અને કરીના ‘ટશન’ના આઉટડોર વખતે પ્રેમમાં પડ્યાં હતાં, એ પ્રકારના રણબીરને ચિંતા કરાવનારા રિસ્કની વાત નથી. પણ ઍક્શન સીન્સ માટે કટરિનાને ટ્રેઇનીંગ પણ લેવી પડી છે જેની ફી એમ લાગે છે કે દીપિકા પાદુકોણની ટ્રેઇનર જેવી મોંઘી નહીં હોય.

દીપિકાની ટ્રેઇનરનો રેઇટ કેટલો છે, જાણો છો? રોજના પાંત્રીસ હજાર રૂપિયા! દીપિકા અત્યારે ફરાહખાનની ફિલ્મ ‘હૅપ્પી ન્યૂ યર’ માટે દુબઈમાં શૂટ કરી રહી છે, જ્યાંથી વહેતા થયેલા આ ‘ડેઇલી વેજ’ની પણ ચર્ચા અન્ય પ્રોડ્યુસર્સમાં છે. ‘હૅપ્પી ન્યૂ યર’ના કલાકારોમાં ફરાહે આ અઠવાડિયે પોતાના ભાઇ સાજીદખાનનો ઉમેરો કર્યો. સાજીદ તેની રમૂજવૃત્તિ માટે જાણીતો હોઇ પોતાનાં વન લાઇનર્સથી એ ‘હૅપ્પી ન્યૂ યર’ને પ્રચાર પૂરો પાડી શકશે. જો કે ફરાહની એ ફિલ્મમાં દીપિકા ઉપરાંત શાહરૂખખાન અને અભિષેક બચ્ચન જેવા સ્ટાર્સ ઑલરેડી છે જ, જેમની નાનામાં નાની હરકતો મિડીયામાં છવાયેલી રહેતી હોય છે. જેમકે અભિષેક માટેનું ઐશ્વર્યાનું ‘કરવા ચૌથ’નું વ્રત.



ઐશ્વર્યાએ ‘કરવા ચૌથ’ના પોતાના ઉપવાસનાં પારણાં કઈ રીતે કર્યાં? (પતિની લાંબી ઉંમર માટે પત્નીએ કરવાના આ ઉપવાસ જેવા કોઇ ઉપવાસ હસબન્ડે વાઇફના દીર્ઘ આયુ માટે કરવાના કેમ નહીં હોય, ભલા?) ઐશ્વર્યા છ વરસમાં પ્રથમવાર પતિથી અલગ હતાં. પિયુ (અભિષેક) પરદેશ હતા, ત્યારે સહાયે આવ્યું ‘સ્કાઇપ’! જી હા, સ્કાઇપ મારફત પતિદેવનાં દર્શન કરીને ઐશ્વર્યાએ પોતાનો ઉપવાસ ખોલ્યો. આ ‘ન્યુઝ’ ખુદ ‘અભિ’ અને પાપા અમિતજીએ પોતપોતાના ટ્વીટર એકાઉન્ટ પર રિલીઝ કરીને સનસનાટી કરી દીધી. તેમણે ટૅકનોલોજીનો  સદઉપયોગ કર્યો એ હકીકત કરતાં બેઉ બચ્ચને શાથી તેની ‘જાણવા જોગ ઍન્ટ્રી’ કરી એનું આશ્ચર્ય છે. આજકાલ તો સ્ટાર્સ જાતે જ ટ્વીટ કરીને આવી ઝીણી ઝીણી પર્સનલ માહિતી પણ તરત પ્રસારિત કરી દે છે. તે જોતાં લાગે છે કે ફિલ્મી દુનિયાની ‘એક્સક્લૂસિવ’ માહિતી સૂંઘનારા અને શોધનારા પત્રકારોના ‘સ્કૂપ’ના જમાના હવે ગયા! તમને શું લાગે છે?

તિખારો!
 
‘કરવા ચૌથ’ના વ્રતને આ સાલ સોશ્યલ મિડીયામાં ‘ફાસ્ટ એન્ડ ફ્યુરિયસ’ તરીકે પણ ઓળખાવાયું. કેટલીક મહિલાઓનો મત હતો કે એક દિવસના ‘ફાસ્ટ’ પછી ૩૬૪ દિવસ ‘ફ્યુરિયસ’ (ઉગ્ર) રહી શકાય છે!! 


Thursday, October 24, 2013

विशीष्ट गानों के विशीष्ट गायक: भीष्म पितामह मन्ना डे


Manna Dey is no more.
As a quick tribute to this great artiste I reproduce an article which was written with an unusual angle, on his 93rd birthday. This article was first published in Hindi Times.



अगले सप्ताह १ मई के दिन हिन्दी फिल्म गायकों के भीष्म पितामह मन्ना डे का ९३वां जन्मदिन है. तब इतने वरिष्ट पार्श्व गायक के बारे में आज तक न जाने कितने ही लेख अलग अलग द्रष्टि से लिखे गये हैं. किसी ने उन के गाये शास्त्रीय राग पर आधारित गानों के बारे में लिखा है, तो किसी ने कौन से संगीतकार या गीतकार के गीत मन्ना दा ने गाये इस बात पर चर्चा की है. इस लिये रफी साहब, किशोर कुमार और मुकेश की तरह उन की विशीष्ट आवाज़ किसी एक हीरो के साथ परिचयात्मक रूप से जुडने के बजाय हर कलाकार के लिये उपयुक्त लगती थी. उन की अलग आवाज़ का फायदा यह था कि जब भी कोई विशीष्ट गीत बनता था जो कि नायक के अलावा किसी और को गाना होता था, तो ऐसी रचनाओं के लिये बहुधा प्रथम पसंद मन्ना डे हुआ करते थे. इस लिये आज हम ऐसे गीत देखने का प्रयास करेंगे जो कि फिल्म के ‘हीरो’ नहीं मगर अन्य अभिनेताओं पर फिल्माये गये थे.

हालांकि यह बात भी इतिहास सिध्ध है कि एक समय पर राज कपूर पर फिल्माये जानेवाले काफी गाने (“प्यार हुआ इकरार हुआ है…”, “दिल का हाल सुने दिलवाला..”, “लागा चुनरी में दाग छुपाउं कैसे...” इत्यादि) मन्ना डे ने गाये हैं. फिर राजेन्द्र कुमार (मुस्कुरा लाड ले मुस्कुरा…) से राजेश खन्ना (ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाये…) तक और शम्मी कपूर (अब कहां जायें हम, ये बता दे ज़मीं…) से लेकर अमिताभ बच्चन (ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे…….) तक के हर समय के सुपर स्टार ने भी मन्ना दा की आवाज़ पर गीत गाये ही हैं.

मगर अपने सीधे सादे स्वभाव की वजह से वे किसी केम्प का हिस्सा नहीं बन पाये. ऐसे में हर कलाकार को किसी एक इमेज में ढाल देने की फिल्मी दुनिया की परंपरा के चलते मन्ना डे को भी “विशीष्ट गानों के विशीष्ट गायक’’ के रूप में प्रस्थापित किया गया. इस से उन को व्यावसायिक फायदा हुआ या नहीं, इस का सब से अच्छा आकलन तो कलाकार खुद ही कर सकते हैं. मगर हमारे लिये उन के गीतों के जरिये ‘हीरो’ कहे जानेवाले कलाकारों के अलावा कार्यरत रहे अन्य अभिनेताओं को भी याद करने का मौका आज होगा! 

एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि मेहमूद के लिये काफी गीत गाने की वजह से इस संपूर्ण गायक को कोमेडी गानों का गायक भी बना दिया गया था. मेहमूद के लिये ‘पडोसन’में “इक चतुर नार…” और “सांवरिया रे…”, तो ‘भूत बंगला’ में “आओ ट्वीस्ट करें..”, ‘औलाद’ में “जोडी हम्मारी जमेंगा कैसे जानी…”  ‘नीलकमल’ में “खाली डब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार…” या फिर ‘प्यार किये जा’ का “ओ मेरी मैना, तु मान ले मेरा कहना…” जैसे मेहमूद के जाने कितने ही कोमेडी गीत मन्ना डे ने गाये हैं. कोमेडी गीतों के लीस्ट में ‘दुज का चांद’ का आगा पर फिल्माया गया “फूल गेंदवा न मारो…” भी तो है, जो शायद ‘पडोसन’ की प्रेरणा जैसा था. वह गाना छुपाये हुए रेकोर्ड प्लेयर पर बजता है और कमेडीयन आगा उसे गाने की एक्टींग करते हैं…. ठीक वैसे ही जैसे ‘पडोसन’ में किशोर कुमार के स्वर को सुनिल दत्त अपनी आवाज़ होने का नाटक करते हुए “मेरे सामनेवाली खिडकी में इक चांद का टुकडा रहता है…” और अन्य गाने गाते हैं.  

मगर मन्ना डे का नाम आते ही “कस्में वादे प्यार वफा… ” (उपकार) या फिर “यारी है इमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी…” जैसे ज्यादा लोकप्रिय गाने और उन के साथ उन गीतों को पर्दे पर प्रस्तुत करनेवाले प्राण साहब की याद ताजा हो जाती है. यह दोनों ही गाने प्राण के भी परिचयात्मक गीत हैं. खलनायक से चरित्र अभिनेता बनने के उन के नये कदम को सर्व स्वीकृत करने में इन गानों का योगदान कौन भूल सकता है?  इसी तरह से काफी फिल्मों में प्राण साहब के साथ जोडी बनानेवाले अशोक कुमार ने भी ‘मेरी सुरत तेरी आंखें’ का प्रसिध्ध गीत “पूछो ना कैसे मैने रैन बिताई…” मन्ना डे के स्वर में गाया था.

उस दौर के एक अन्य लोकप्रिय चरित्र अभिनेता बलराज साहनी उपर फिल्माया गया “अय मेरी ज़ोहराजबीं, तुझे मालूम नहीं…” (वक्त) भी उस अभिनेता के पहचानपत्र जैसा गिना जाता है.  परंतु, बलराज सहानी की मुख्य भूमिका वाली ‘छोटी बहन’ का गाना “ओ कली अनार की ना इतना सताओ…” पर्दे पर किसने गाया था, जानते हैं? रेहमान ने! ‘वक्त’ में ‘चिनोय सेठ’ बनने वाले रेहमान को अपनी प्रेमिका के साथ पेड के इर्द गिर्द दौडते और गाना गाते देखना हो तो मन्ना डे का यह गीत देखना चाहिये. मन्ना डे का अन्य एक अमर गीत है ‘देख कबीरा रोया’ का “कौन आया मेरे मन के द्वारे…..” और उसे पर्दे पर अभिनित कौन करता है? अशोक कुमार और किशोर कुमार के भाई अनुप कुमार! तो ऐसा ही एक दुसरा जाना पहचाना गीत ‘बुढ्ढा मिल गया’ का फिल्म का “आयो कहां से घनश्याम…” है. उसे पर्दे पर गाया था हर दिल अज़ीज़ अभिनेता ओमप्रकाश जी ने. इस में मन्ना डे का साथ किसी व्यावसायिक गायिका ने नहीं, बल्कि फिल्म की हीरोइन अर्चना ने दिया था.

जब कि मन्ना दा का गाया ‘तलाश’ का शिर्षक गीत “तेरे नैना तलाश करे जिसे वो है तुझी में कहीं दीवाने….” पुराने जमाने के एक और कलाकार शाहु मोडक ने पर्दे पर गाया था. भारतीय तालवाद्यों के अदभूत रीधम वाले इस गाने में शाहु मोडक पंडित जसराज की अदा में हाथ में स्वर मंडल लिये जिस अंदाज से गाते हैं, उस से संगीत और नृत्य सभर इस रचना का संपूर्ण माहौल बन जाता है. उसी तरह से स्वरमंडल लिये ए.के. हंगल साहब ने भी तो अमिताभ और राखी की फिल्म ‘जुर्माना’ की रचना “ए सखी, राधिके बांवरी हो गई…” की शुरूआत गाई थी ना?

मन्ना डे का अन्य एक लोकप्रिय गाना “चुनरी संभाल गोरी, उडी चली जाय रे…” (‘बहारों के सपने’ में) था, उसे चरित्र अभिनेता अनवर हुसैन पर फिल्माया गया था. ऐसे ही एक दुसरे एक्टर क्रिश्न धवन थे, जिन्हों ने सैंकडों फिल्मों में काम किया था. मगर कितने गीत गाने का मौका उन्हें मिला होगा यह एक संशोधन का विषय हो सकता है. मगर राज कपूर की ‘तीसरी कसम’ का मस्ती भरा वह लोकगीत नुमा गाना “चलत मुसाफिर मोह लिया रे, पिंजडेवाली मुनिया…” क्रिश्न धवन ने गाया था.

उस गाने में विशेष बात यह थी कि हीरो राजकपूर थे. मगर अपने पात्र के अनुरूप वे इस गाने के समूह स्वरों में सिर्फ साथ देने का काम अन्य छोटे मोटे कलाकारों की तरह ही करते हैं! कितने स्टार यह करने का साहस कर सकेंगे? (इस गाने में राज साहब को कोरस में गाते हुए, छोटी डफली बजाते देखनेवाला हर कोई यह समज़ सकेगा कि आर.के. की म्युज़िक की सेन्स कितनी जबरदस्त थी!) राज कपूर के निर्माण में बनी आर. के. फिल्म्स की ‘बुट पोलीश’ का मन्ना डे का एक क्लासिकल गाना “लपक झपक तु आ रे बदरवा…” अन्य एक चरित्र अभिनेता डेवीड ने गाया था. आर. के. की एक और फिल्म ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’ का भक्ति गीत “यशोमति मैया से पूछे नंदलाला.…” का मन्ना डे के स्वर में सशक्त चरित्र अभिनेता कन्हैयालाल ने गाया था.

मगर मन्ना डे के गाये इतने सारे गानों में से कुछ गीतों के अभिनेता के नाम जानने की उत्सुकता कभी कम नहीं हुई है. इस लिये आज मन्ना दा को उन के जन्मदिन पर ‘हिन्दी टाइम्स’ की ओर से बधाई देते हुए तथा उन के निरोगी दीर्घायु की कामना करते हुए हम पाठकों से पूछते हैं कि ‘मधुमति’ के गीत “दैया रे दैया चढ गयो पापी बिछुआ…” में मन्ना डे के स्वर में पर्दे पर “मंतर फेरुं कोमल काया…” गाने वाले कलाकार, पर्दे पर “अय मेरे प्यारे वतन अय मेरे बिछडे चमन तुझ पे दिल कुरबान…” (काबुलीवाला) गाते अभिनेता, ‘सफर’ का अत्यंत अर्थपूर्ण गाना “नदिया चले, चले है धारा…..” गाते मल्लाह बनते अभिनेता और ‘आशीर्वाद’ में गाडीवान बनकर “जीवन से लम्बे है बन्धु, ये जीवन के रस्ते…” गानेवाले अदाकार.... इन कलाकारों में से किसी का भी नाम आप में से अगर कोई जानते हों, तो अवश्य बतायें. हमें इन्तज़ार रहेगा.

 
भगवान इस महान गायक के आत्मा को शांति दे.....!