Thursday, November 21, 2013

ये आज भी ज़िन्दा ही हैं..... ललिता पवार


                              ललिता पवार

        हर तरह के अभिनय का अनोखा पावर हाउस!



“हमारी बेटी तो बेचारी सीधी सादी है, मगर उसकी सास बिलकुल ललिता पवार है!” इस प्रकार के संवाद किसी जमाने में सामाजिक बातचीत में सामान्य हो गए थे। यह नतीजा था ललिता पवार की नकारात्मक (बहुधा परिवार में कलेश करवाती महिला या बहु को त्रास देने वाली सास की) भूमिकाओं का। किसी कलाकार का नाम सिर्फ नाम न रहकर विशेषण बन जाय इस से बडी उपलब्धि क्या हो सकती है? ललिता जी जब अपनी बायीं तरफ की आंख छोटी कर किसी पर गुस्सा करतीं या फैमिली के किसी सदस्य के कान भरतीं तब पूरा सिनेमाहाल उन पर धिक्कार बरसाता। याद कीजिए १९८० की फ़िल्म ‘सौ दिन सास के’ जिस में दहेज के लिए बहु को पीडा देने वाली सास की भूमिका में! बल्कि किसी भी फ़िल्म में उनका प्रवेश होते ही सभी को डर लगने लगता कि अभी ये औरत किसी के सुखी संसार में आग लगायेगी!


मगर ऐसा भी नहीं था कि ललिता जी सिर्फ नेगेटिव प्रकार की ही एक्टिंग कर सकतीं थीं। ये और बात है कि निर्माता निर्देशक उन्हें ऐसे ही रोल ज्यादा देते थे। अन्यथा राज कपूर और नूतन की ‘अनाडी’ में ऋषिकेश मुकरजी ने ‘‘मिसीस डी’सा” की भूमिका दी और याद कीजिए किस अनोखे अंदाज में ललिता जी ने उपर से सख्त और अंदर से कोमल स्वभाव की मकान मालिकन के उस पात्र को पर्दे पर जीवित किया था। वे बार बार सख्त अंदाज में “हम मालुम... हम मालुम...” कहतीं और अपने किरायेदार में अपने मृत जवान बेटे को देखकर उस पर अपनी सारी ममता बरसाती। ‘अनाडी’ में ऐसे कई मौके आते हैं जब ललिता जी के अभिनय से दर्शक की आंखें भर आती हैं। इस लिए यहाँ हर सीन का विवरण करने के बजाय ये कहकर हम उस एक्टिंग की प्रशंसा करेंगे कि ‘‘मिसीस डी’सा” के उस अभिनय के लिए ललिता पवार को उस साल का ‘श्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री’ का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था।


‘अनाडी’ से पहले राजकपूर की ‘श्री ४२०’ में भी ललिता जी ने इतनी ही ममतामयी ‘दिलवाली केलेवाली’ माता की भूमिका की थी। राज कपूर ने वैसे उन्हें पहले ‘आवारा’ के लिए भी पसंद किया था। मगर १९९१ में ‘जी’ सामयिक को दी गई एक मुलाकात में ललिता जी ने खुलासा किया था कि उनके एक बंगले को लेकर राज कपूर से विवाद हो जाने की वजह से उस फ़िल्म से उन्हें निकाल दिया गया था। वो बंगला ललिता जी का था और राज कपूर उसे खरीदना चाहते थे; क्योंकि वह आर. के. स्टुडियो के सामने था। जब ललिताजी ने इनकार कर दिया, तो कुछ ही दिन में उन्हें कानूनी नोटीस मिला जिस में ये कहा गया था कि  ‘आवारा’ में उनकी आवश्यकता नहीं है!

लेकिन ‘श्री ४२०’ के लिए उन्हें के.ए.अब्बास ने राजी कर लिया और फिर तो न सिर्फ उस फिल्म में  और ‘अनाडी’ में बल्कि ‘संगम’ और ‘दीवाना’ जैसी राजसाहब की मुख्य भूमिका वाली फ़िल्मों में ललिता जी ने काम किया। इतना ही नहीं, आर.के. स्टुडियो में एक नया मकान बना तब उसका उदघाटन ललिता पवार से रिबन कटवाकर करवाया! वैसे ललिता पवार का असल नाम ‘अंबिका सगुन’ था और उन्होंने छोटे बच्चे से लेकर हिरोइन और दादीमा तक के पात्रों को जीवित किया था। ‘अंबिका’ नाम फ़िल्म की हिरोइन के लिए योग्य नहीं लगने से ‘ललिता’ रखा गया और उनकी शादी गणपत राव पवार से होने की वजह से ‘पवार’ कहलाईं। मगर उनके पति के ललिता जी की बहन से घने संबंध होने की वजह से उस शादी से मुक्त हो गईं। 


उस के बाद फ़िल्म निर्माता राज प्रकाश गुप्ता से विवाह किया। मगर नाम अंत तक ‘ललिता पवार’ ही रखा। १९२८ में मूक फ़िल्मों में बाल कलाकार से प्रारंभ कर बोलती फ़िल्मों और श्वेत श्याम से रंगीन चलचित्रों तक के हर दौर को देखा था। शायद कम लोगों को पता होगा कि आज करिना और कटरिना से लेकर दीपिका तथा मल्लिका शेरावत जैसी सेक्सी कही जानेवाली नायिकाएं जिस पोशाक को पहनकर लाखों सिनेमाप्रेमीओं का दिल जीततीं हैं, उस टु पीस बिकीनी को पहनने वाली हिन्दी सिनेमा की पहली हिंमतवान हिरोइन ललिता पवार थी! उन्हों ने १९३५ की ‘हिम्मत-ए-मर्दा’ में बिकीनी पहनकर तहलका मचा दिया था।

ललिताजी को बाल कलाकार के रूप में १८ रूपये माहवार मिलता था। मगर हिरोइन बनने के बाद उनके भाव बढ गये। पैसे आते गये और वे खुद निर्मात्री बनकर फ़िल्में भी बनाने लगीं थीं। ऐसे में एक फ़िल्म ‘जंग-ए-आज़ादी’ के शूटींग के दौरान एक ऐसा हाद्सा हो गया, जिसने ललिताजी के जीवन की दिशा ही बदल डाली। उस फ़िल्म के एक द्दश्य में अभिनेता भगवान दादा को ललिता जी को एक थप्पड मारना था। मगर उन्होंने वो इतनी जोर से मारा कि ललिता जी गिर पडी और होश खो बैठी। ये हुआ एक छोटे से गांव में, जहाँ कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

 
दुसरे दिन उन्हें मुंबई ले जाया गया, जहाँ दाक्तर ने बताया कि उनके बायें अंग को लकवा मार गया था। तीन साल तक उनका इलाज चलता रहा। अपनी करार की हुई सारी फ़िल्में वे गंवा चूकी। उनकी बायीं आंख को हमेशा के लिए नुकसान हो गया। अब नायिका बनना संभव नहीं था। बचपन से फ़िल्मों में होने की वजह से पढाई भी नहीं हुई थी। इस लिए किसी भी भूमिका में वापिस अभिनय करने का निश्चय कर के वे फिर से फ़िल्मों में आई। अपने पर आई आपत्ति को अवसर में बदलते हुए ललिता पवार ने अपने बदले चेहरे को एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में बखुबी उपयोग किया।


 ‘अनाडी’ और ‘श्री ४२०’ से अलग जैमिनी की ‘गृहस्थी’ में ललिता पवार ने जो भूमिका की उस का परिणाम ये हुआ कि मद्रास में बनने वाली ‘ससुराल’ और ‘घराना’ जैसे शिर्षक वाली पारिवारिक फ़िल्मों में वे एक अनिवार्य अभिनेत्री बन गई। ‘गृहस्थी’ के लिए उन्हें पांच तोला सोना भी पुरस्कार के रूप में मिला था। मद्रास की एक और फ़िल्म ‘घराना’ का एक गाना “दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ, छोडो भी ये गुस्सा जरा हंस के दिखाओ...” काफी प्रसिद्ध हुआ था। 

ललिता पवार को ऐसी ही नहीं हंसने वाली माता के रूप में शम्मी कपूर की ‘जंगली’ देखने वाले तब दंग रह गये थे, जब उसी शम्मी जी के बुढे स्वरूप के प्रेम में ललिता जी फ़िल्म ‘प्रोफेसर’ में पडकर दर्शकों को हंसाती थी। हर तरह के अभिनय का परिचय देतीं ललिता जी ‘संपूर्ण रामायण’ में ‘मंथरा’ जैसा धिक्कार योग्य पात्र करते भी नहीं झिझकी थी।


उसी वजह से शायद जब रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सिरीयल का निर्माण किया तब ‘मंथरा’ के पात्र के लिए ललिता पवार को ही पसंद किया था। जब कि ऋषिकेश मुकरजी ने अपनी ‘अनाडी’ वालीं “मिसीस डी’सा” को पुनर्जीवित करते हुए ‘आनंद’ में राजेश खन्ना को अपनी सख्त शिस्त से अस्पताल में रखने का प्रयास करने वाली ममता भरी इसाई नर्स का रोल दिया था। ललिता पवार ने दिलीप कुमार के साथ ‘दाग’ में तो देव आनंद के साथ ‘शराबी’ में तो धर्मेन्द्र की ‘आंखें’ जैसी करीब हर बडे स्टार की फ़िल्मों में काम कर चूकी ललिता जी ने ७० साल के अपने करियर में, उनके खुद के अनुसार, करीब ७०० फ़िल्मों में काम किया था।

१९९८ में जब उनके पति राज प्रकाश गुप्ता अपने इलाज के लिए मुंबई गये थे, तब ललिता पवार पुणे में थी। उस दौरान २४ फेब्रुआरी के दिन उनकी मौत हो गई। परंतु, दो दिन तक किसी को पता ही नहीं चला था। इतनी सिनीयर एक्ट्रेस की ऐसी अनजान मौत की उन दिनों चर्चा भी खुब हुई थी। मगर १९८७ के ‘मुवी’ मेगज़ीन को जैसा कि ललिता जी ने बताया था, वे अपने काम की वजह से जानी जाती थी। वे अपने निराले अंदाज़ में कहती थी कि उन्होंने किसी पर कोई एहसान नहीं किया था। अपने व्यवसाय के प्रति वफादार रहने के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं किया। मगर हम जानते हैं और मानते भी हैं कि ललिता पवार जैसे कलाकारों ने बरसों तक हमारा मनोरंजन करके हमारे दिलों में ऐसी जगह बनाई है कि वे आज भी हमारे बीच ज़िन्दा ही हैं।








1 comment:

  1. Salil Sir,

    She is the legend where even you think about negative role, you must have to remember Lalitaji.... I came to know much unknown things about her in this article... Thanks again....

    Sam

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