ललिता पवार
हर तरह के अभिनय का अनोखा पावर हाउस!
“हमारी बेटी तो बेचारी
सीधी सादी है, मगर उसकी सास बिलकुल ललिता पवार है!” इस प्रकार के संवाद किसी जमाने
में सामाजिक बातचीत में सामान्य हो गए थे। यह नतीजा था ललिता पवार की नकारात्मक (बहुधा
परिवार में कलेश करवाती महिला या बहु को त्रास देने वाली सास की) भूमिकाओं का। किसी
कलाकार का नाम सिर्फ नाम न रहकर विशेषण बन जाय इस से बडी उपलब्धि क्या हो सकती है?
ललिता जी जब अपनी बायीं तरफ की आंख छोटी कर किसी पर गुस्सा करतीं या फैमिली के किसी
सदस्य के कान भरतीं तब पूरा सिनेमाहाल उन पर धिक्कार बरसाता। याद कीजिए १९८० की फ़िल्म
‘सौ दिन सास के’ जिस में दहेज के लिए बहु
को पीडा देने वाली सास की भूमिका में! बल्कि किसी भी फ़िल्म में उनका प्रवेश होते ही
सभी को डर लगने लगता कि अभी ये औरत किसी के सुखी संसार में आग लगायेगी!
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‘अनाडी’
से पहले राजकपूर की ‘श्री ४२०’ में भी
ललिता जी ने इतनी ही ममतामयी ‘दिलवाली केलेवाली’ माता की भूमिका की थी। राज कपूर ने
वैसे उन्हें पहले ‘आवारा’ के लिए भी पसंद
किया था। मगर १९९१ में ‘जी’ सामयिक को दी गई एक मुलाकात में ललिता जी ने खुलासा किया
था कि उनके एक बंगले को लेकर राज कपूर से विवाद हो जाने की वजह से उस फ़िल्म से उन्हें
निकाल दिया गया था। वो बंगला ललिता जी का था और राज कपूर उसे खरीदना चाहते थे; क्योंकि
वह आर. के. स्टुडियो के सामने था। जब ललिताजी ने इनकार कर दिया, तो कुछ ही दिन में
उन्हें कानूनी नोटीस मिला जिस में ये कहा गया था कि ‘आवारा’
में उनकी आवश्यकता नहीं है!
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ललिताजी को बाल कलाकार
के रूप में १८ रूपये माहवार मिलता था। मगर हिरोइन बनने के बाद उनके भाव बढ गये। पैसे
आते गये और वे खुद निर्मात्री बनकर फ़िल्में भी बनाने लगीं थीं। ऐसे में एक फ़िल्म ‘जंग-ए-आज़ादी’ के शूटींग के दौरान एक ऐसा
हाद्सा हो गया, जिसने ललिताजी के जीवन की दिशा ही बदल डाली। उस फ़िल्म के एक द्दश्य
में अभिनेता भगवान दादा को ललिता जी को एक थप्पड मारना था। मगर उन्होंने वो इतनी जोर
से मारा कि ललिता जी गिर पडी और होश खो बैठी। ये हुआ एक छोटे से गांव में, जहाँ कोई
विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
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‘अनाडी’
और ‘श्री ४२०’ से अलग जैमिनी की ‘गृहस्थी’ में ललिता पवार ने जो भूमिका की
उस का परिणाम ये हुआ कि मद्रास में बनने वाली ‘ससुराल’ और ‘घराना’ जैसे
शिर्षक वाली पारिवारिक फ़िल्मों में वे एक अनिवार्य अभिनेत्री बन गई। ‘गृहस्थी’ के लिए उन्हें पांच तोला सोना भी
पुरस्कार के रूप में मिला था। मद्रास की एक और फ़िल्म ‘घराना’ का एक गाना “दादी अम्मा
दादी अम्मा मान जाओ, छोडो भी ये गुस्सा जरा हंस के दिखाओ...” काफी प्रसिद्ध हुआ
था।
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उसी वजह से शायद जब
रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सिरीयल का निर्माण
किया तब ‘मंथरा’ के पात्र के लिए ललिता पवार को ही पसंद किया था। जब कि ऋषिकेश मुकरजी
ने अपनी ‘अनाडी’ वालीं “मिसीस डी’सा” को
पुनर्जीवित करते हुए ‘आनंद’ में राजेश
खन्ना को अपनी सख्त शिस्त से अस्पताल में रखने का प्रयास करने वाली ममता भरी इसाई नर्स
का रोल दिया था। ललिता पवार ने दिलीप कुमार के साथ ‘दाग’ में तो देव आनंद के साथ ‘शराबी’
में तो धर्मेन्द्र की ‘आंखें’ जैसी
करीब हर बडे स्टार की फ़िल्मों में काम कर चूकी ललिता जी ने ७० साल के अपने करियर में,
उनके खुद के अनुसार, करीब ७०० फ़िल्मों में काम किया था।
१९९८ में जब उनके पति
राज प्रकाश गुप्ता अपने इलाज के लिए मुंबई गये थे, तब ललिता पवार पुणे में थी। उस दौरान
२४ फेब्रुआरी के दिन उनकी मौत हो गई। परंतु, दो दिन तक किसी को पता ही नहीं चला था।
इतनी सिनीयर एक्ट्रेस की ऐसी अनजान मौत की उन दिनों चर्चा भी खुब हुई थी। मगर १९८७
के ‘मुवी’ मेगज़ीन को जैसा कि ललिता जी ने बताया था, वे अपने काम की वजह से जानी जाती
थी। वे अपने निराले अंदाज़ में कहती थी कि उन्होंने किसी पर कोई एहसान नहीं किया था।
अपने व्यवसाय के प्रति वफादार रहने के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं किया। मगर हम जानते हैं
और मानते भी हैं कि ललिता पवार जैसे कलाकारों ने बरसों तक हमारा मनोरंजन करके हमारे
दिलों में ऐसी जगह बनाई है कि वे आज भी हमारे बीच ज़िन्दा ही हैं।
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Salil Sir,
ReplyDeleteShe is the legend where even you think about negative role, you must have to remember Lalitaji.... I came to know much unknown things about her in this article... Thanks again....
Sam