अमिताभ की सब से लोकप्रिय
सिने-‘मां’: निरूपा राय!
“जाओ, पहले उस आदमी का साइन लेकर
आओ जिसने मेरे बाप से साइन लिया था....”
याद है न सलीम-जावेद के ये चोटदार संवाद जिसने अमिताभ बच्चन को अपने करियर में एक नई
ऊंचाई बक्षी थी? मगर उन लेखकों का कमाल ये था कि अमिताभ की मां के रूप में सामने खडी
निरूपा राय को भी उतने ही सशक्त संवाद दिये थे। निरूपा जी जवाब में कहतीं हैं कि, “वो आदमी कौन था, जिसने तुम्हारे हाथ पे लिख दिया
था कि तुम्हारा बाप चोर है? कोई नहीं... मगर तु तो मेरा अपना बेटा था... मेरा अपना
खुन?... तुने अपनी मां के माथे पे ये कैसे लिख दिया कि उसका बेटा एक चोर है?” हिन्दी
सिनेमा के इतिहास में रचे गए मां-बेटे के सबसे बेहतरिन द्दश्यों में से एक उस सीन का
अंत जिस अंदाज में निरूपा जी करतीं हैं, वो
कौन भुला होगा? “बडा सौदागर बन गया है, बेटा....
मगर तु अभी इतना अमीर नहीं हुआ कि अपनी मां को खरीद सके!”
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शादी
करके जब वे ससुराल आईं तब पता चला कि उनके पति किशोरचन्द्र को अभिनेता बनना था। एक
गुजराती फ़िल्म के लिए मुख्य अभिनेता का विज्ञापन देख किशोरभाई ने अपना उम्मीदवारीपत्र
भेजा। जब साक्षात्कार के लिए बम्बई बुलाया, तो गुजरात के बलसाड के किशोर अपने साथ अपनी
नई नवेली दुलहन ‘कोकीला’ को भी ले गए। जी हां, निरुपाजी का मूल नाम ‘कोकीला चौहाण’
था, जो शादी के बाद ‘कोकीला बलसारा’ हुआ था। पति को तो फ़िल्मवालों ने पसंद नहीं किया,
मगर मासुम दिखती पत्नी को ‘राणकदेवी’ नामक
उस गुजराती फ़िल्म की नायिका का रोल ओफर हुआ और राशनिंग इन्स्पेक्टर पति की इच्छा का
सम्मान करते हुए कोकीला ने हामी भर दी। मगर निरुपा जी के पिताजी रेल्वे में नौकरी करते
थे। उन्हें और मायके वालों को ये कदम ठीक नहीं लगा। क्योंकि ’४० के दशक में यानि आज़ादी
से पहले के ज़माने में महिलाओं का सिनेमा में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। इस
लिए, कोकीला से उनके मायके वालों ने उनसे सारे संबंध तोड दिये।
एक
तरफ गुजराती फ़िल्मों में वे सामाजिक नायिका थीं, तो हिन्दी में ‘हर हर महादेव’ में भगवान शिव की ‘पार्वती’
बनती। उनकी फ़िल्मों में नायक महिपाल, त्रिलोक कपूर और शाहु मोडक जैसे अभिनेता होते
थे। वे कहीं ‘सीता’ तो कहीं ‘सावित्री’ और कहीं ‘दमयंति’ बनतीं। उस दौर की फ़िल्मों
के नाम से ही पता चलता है कि मुख्य धारा के बडे सितारों वाली पिक्चरों की नायिकाएं
भले ही मधुबाला, मीनाकुमारी और नरगीस होती थी; परंतु धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों के
भी स्टार होते थे, जिन में निरूपा जी भी एक थी। निरुपा जी ने मई १९९३ में ‘स्टार एन्ड
स्टाइल’ पत्रिका को दिये एक इन्टरव्यु में बताया था कि उन दिनों में अभिनेता अभिनेत्री
स्टुडियो की नौकरी करते थे। वे और मधुबाला साथ ही लोकल ट्रेन में आते जाते थे। स्टेशन
से स्टुडियो दोनों साथ जाते थे!
मधुबाला तथा अन्य हिरोइनों की तरह निरुपा राय भी एक लोकप्रिय अभिनेत्री थी। किसी भी नायिका की लोकप्रियता का अंदाजा उन दिनों ‘लक्स’ साबुन के विज्ञापन से आता था। वो दिन ऐसे थे कि जब तक कि आप ‘लक्स’ ब्युटी नहीं बनती, आप टॉप ग्रेड की हिरोइन नहीं गिनी जाती थी। एक तरह से उस इश्तहार में आना किसी एवार्ड से कम नहीं था। निरुपा जी ‘लक्स ब्युटी’ भी बनी। इसी तरह से जब वे कार्लोवी वारी फेस्टीवल में हिस्सा लेने गईं, तब राजकपूर तथा बलराज साहनी के साथ उनकी तस्वीर का भी एक ऐयरलाइन ने अपने विज्ञापन में उपयोग किया था। यह भी निरुपाजी की लोकप्रियता किस दरज्जे की थी, उसका प्रमाण था।
निरुपा
राय की फ़िल्मों की सूची में ‘नाग पंचमी’,‘सति
रोहिणी’, ‘शिव कन्या’, ‘चंडी पूजा’, ‘अमरसिंह राठौड’, ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’, ‘कवि कालीदास’,
‘रानी रुपमति’, ‘वीर दुर्गादास’, ‘रजिया सुलतान’,
‘शिव सीता अनसूया’, ‘मंगलफेरा’ (गुजराती), ‘वीर भीमसेन’, ‘गाडा नो बेल’ (गुजराती),
‘दसावतार’, ‘राजरतन’, ‘शुक रंभा’, ‘राजरानी
दमयंति’, ‘शिव शक्ति’, ‘जय महाकाली’, ‘श्री गणेश विवाह’, ‘बजरंग बली’, ‘राम हनुमान
युद्ध’, ‘नाग मणी’, ‘लक्ष्मी पूजा’, ‘कृष्णा सुदामा’, ‘सति नाग कन्या’, ‘राज दरबार’
के साथ साथ ‘हमारी मंज़िल’, ‘भाग्यवान’,
‘धर्मपत्नी’, ‘कंगन’ ‘दो रोटी’, ‘चालबाज़’, ‘जनम जनम के फेरे’ जैसी फ़िल्में भी थी।
उन में भी देव आनंद की ‘मुनीमजी’ का अनुभव
निरुपा जी को बहुत कुछ सिखा गया। खास तो ये कि किसी एक वक्त पर निराश करने वाले प्रसंग
के पीछे भी कुदरत की किसी बडी योजना का हाथ
होता है।
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निरूपा
राय ने बलराज साहनी और अशोक कुमार इन दोनों सशक्त अभिनेताओं के साथ करीब १५-१५ फ़िल्में
करने से सोश्यल फ़िल्मों में भी अब एक विशीष्ट जगह बना ली थी। फिर भी उनकी अभिनय यात्रा
में सबसे बडा बदलाव आया ‘दीवार’ से! ‘दीवार’ एक तरह से देखा जाय तो ‘मदर इन्डिया’ के वार्ता तत्व के आधार पर ‘माता’ को केन्द्र में रखकर लिखी कहानी
थी। उस में मां का पात्र अत्यंत महत्वपूर्ण था। परंतु, पता नहीं किस वजह से वैजयन्तिमाला
जैसी अभिनेत्री ने उस भूमिका के लिए इनकार कर दिया और पर्दे पर अमिताभ की माता का रोल
निरुपा जी को मिला। ‘दीवार’ से शुरु हुई
उनकी दुसरी इनींग्स में भी निरुपा राय उतनी ही सफल रहीं जितनी की पहली में। उसकी और
अन्य बातें करेंगे.... हमलोग... अगले हफ्ते!
तीन पुरस्कार जीतने वाली प्रथम सहायक अभिनेत्री!
(पिछले हफ्ते से आगे)
निरुपा राय को मिला ‘दीवार’ का रोल वैजयन्तिमाला ने इनकार किया, उस के पीछे एक कारण ये भी था कि उस में अमिताभ के अलावा शशि कपूर की भी माता बनना था। अब शशिबाबा के बडे भाई शम्मी कपूर की वे अभी चार साल पहले आई फ़िल्म ‘प्रिन्स’ में नायिका थीं। जब ‘दीवार’ का निर्माण आरंभ हुआ तब बतौर हिरोइन उनकी ‘गंवार’ को आये अभी दो-तीन साल ही हुए थे। तब यह भूमिका निरुपा राय को ऑफर हुई और उनके लिए ‘दीवार’ अपने करियर की नई ऊंचाई तय करने में सबसे बडी सहायक बनी। मगर इतनी सशक्त भूमिका और इतनी सफल फ़िल्म होने के बावजूद ‘दीवार’ के लिए निरुपाजी को सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार उस साल नहीं मिला था, वर्ना फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड्स में वे अकेली ऐसी अभिनेत्री होतीं, जिन्होंने चार बार यह सम्मान प्राप्त किया हो।
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‘दीवार’
के लिए यश चोप्रा ने निरुपा जी को साइन किया उस से पहले ‘माँ’ के स्वरूप में उनके लिए
‘राजा और रंक’ में वो यादगार गाना भी आ
चूका था, “तु कितनी अच्छी है, तु कितनी भोली
है, ओ माँ...”! तो ‘लाडला’ में उस
से विपरित भावनाओं वाला यह गाना भी उन्होंने अपने ही पात्र को संबोधित करते हुए गाया
था, “कौन तुझको मां कहेगा, तु किसी की मां
नहीं....”। सिर्फ गानों के संदर्भ से देखें तो भी निरुपा राय ने नायिका, सहनायिका
और चरित्र अभिनेत्री इन तीनों ही रूप में पर्दे पर कितने अविस्मरणीय गाने अभिनित किये
थे! अगर कुछ को ही याद करें तो.... सब से पहले स्मृति में दस्तक देता है, ‘रानी रुपमती’ का वो सदाबहार गाना, “आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते
हैं....”।
इसी तरह से ‘आसरा’ के शिर्षक गीत “मेरे सुने
जीवन का आसरा है तु, कौन कहता है बेआसरा है तु....” को भी निरुपा जी ने अभिनित
किया था। तो ‘रझिया सुलताना’ में ५० के
दशक के हिन्दी फ़िल्मसंगीत के अनमोल रोमेन्टिक सोंग “ढलती जाये रात, कह ले दिल की बात...” में भी निरूपा राय नायिका के तौर
पर जयराज के साथ थीं। परंतु, क्या आपको पता है कि एक ज़माने में धूम मचाने वाला ‘जनम जनम के फेरे’ फ़िल्म का गीत “जरा सामने तो आओ छलिये, छुप छुप छलने में क्या
राज़ है, युं छुप ना सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की ये आवाज़ है...” पर्दे पर निरुपा राय ने भी गाया था?
निरुपा जी ने जिस फ़िल्म से सामाजिक फ़िल्मों में भी
अपना अलग स्थान बनाया था, वो ‘गृहस्थी’
में घर परिवार के लिए बलिदान देने वाली स्त्री के उनके पात्र के लिए लिखा गया रफ़ी साहब
की आवाज़ का ये गीत, “अगर संसार में औरत न होती,
तो इन्सानों की ये इज़्ज़त न होती....”! माँ की भूमिका में निरुपा जी को संबोधित
एक गीत १९७१ में आये ‘संसार’ पिक्चर का
था, “मां तु आंसु पोंछ ले अपने, रोने की कोई
बात नहीं, जब तक तेरे साथ हुं मैं, मत सोच के कोई साथ नहीं...”।
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हसरत साहब की इस पवित्र कविता का लुत्फ़ लेने के लिए सिर्फ पहली दो पंक्तियां
ही सुनिये, “जय नंदलाला, जय जय गोपाला. माधव
मोहन मुकुन्द मुरारी, देवकी नंदन किशन कन्हाई, जुगलकिशोर श्याम गिरधारी...” आज
की पीढी की दिलचस्पी की एक बात ये भी है कि इस फ़िल्म में निरुपा जी के तीन संतानो में
से एक बाल कलाकार ‘बेबी सोनिया’ थी, जो आज के सुपर स्टार रणबीर कपूर की माताजी नीतु
कपूर हैं और इस गीत में वे भी पर्दे पर निरुपा राय का साथ देती है।
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निरुपाजी शायद ऐसे ही किसी सम्मान की राह देख रही होंगी। क्योंकि उसी वर्ष अक्तुबर की १३ तारीख को ह्रदयरोग के हमले की वजह से ७२ साल की उम्र में निरुपा राय का देहांत हो गया। परंतु, उनके अभिनय से निरुपा जी हमारे बीच आज भी ज़िन्दा ही हैं।
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