हिन्दी सिनेमा जगत से ’७० के दशक के कलाकारों के निधन का सिलसिला जाने रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। अभी राजेश खन्ना की बिदाई का गम कम भी नहीं हुआ था कि निर्देशक बी. आर. इशारा भी चल बसे!
इशारा जी
के साथ ‘चेतना’ का नाम इस तरह जुडा है
कि उन्हों ने सिर्फ वो एक ही फिल्म बनाई होती तब भी उन्हें कोई भूल नहीं पाता। ‘चेतना’ की हीरोइन से जो संवाद उन्हों ने
१९७० में कहलवाये थे ऐसे डायलॊग की हिंमत आज ४० साल बाद भी इक्का दुक्का निर्देशक ही
कर पायेंगे। ‘चेतना’ की नायिका देह का
व्यापार करनेवाली है। फिल्म में एक जगह वह कहती है, “एक नंगी जवां औरत के सामने हर मर्द नंगा हो जाता है और मैंने इतने नंगे मर्द
देखे हैं, कि कपडा पहने मर्दों से मुझे नफरत हो गई है!”
इस लिये
इशारा को अपनी इस पहली फिल्म के लिये कोई प्रोड्युसर नहीं मिल रहा था. फिर इन्डस्ट्री
के सिनीयर लोगों ने तो उन्हें किशोर से युवा होते देखा हुआ था। ये वही लडका था जो कभी
सेट पर सब के लिये चाय-पानी ले कर आता था! जी हां, इशारा जब नये नये बम्बई आये थे,
तब एक छोटी सी होटल पर नौकरी करते थे। स्टुडियो में ‘टी बोय’ के नाम से उन्हें सब जानते
थे। अगर नरगीस जी ने उन का हाथ नहीं पकडा होता तो ‘बी.आर. इशारा’ कभी निर्देशक नहीं
बन पाते और शायद चायवाले लडके ही बने रहते!
नरगीस उन दिनों, १९५२ में, ‘जोगन’ के लिये शुटिंग कर रहीं थीं। उन के लिये चाय ले कर इशारा मेक अप रूम में जब गये, तब जिस अंदाज़ में उन्होंने “मे आई कम इन, मेडम?” पूछा, नरगीस जी आश्चर्य चकित हो गईं कि एक चाय लानेवाला लडका इतने अच्छे से पेश आता है! नरगीस ने थोडी निजी पूछताछ की। लेकिन इशारा ने बाहर जाकर अपनी नौकरी की अर्ज़ी उर्दू में लिखकर नरगीस के ड्रायवर कासिम को दे दी।
दुसरे दिन स्टुडियो में नरगीस ने निर्देशक लेख टंडन से इशारा को नौकरी देने के लिये कहा। मगर उन्होंने के. आसिफ के पास भेजा। वहां भी बात नहीं बनी। होटलवाले ने भी लडके के रंगढंग देखकर उसे नौकरी से निकाल दिया। इशारा तो न घर के रहे न घाट के! एक दिन सुबह पहूंच गये नरगीस के बंगले पर।
उन्हें सारा किस्सा सुनाया कि अब तो चायवाले ‘टी-बोय’ की नौकरी भी हाथ से गई है। नरगीस उन्हें ‘छोटी भाभी’ के मुहूरत पर ले गईं और वहां गीतकार कमर जलालाबादी से परिचय करवाया। उन्हों ने ४० रूपये माहवार पर इशारा को अपने सहायक के रूप में रख लिया। मगर अब मुश्किल नाम की होने लगी। इशारा जी का असली नाम तो रोशनलाल था। हिमाचल प्रदेश में जन्मे रोशन के मां-बाप दोनों ही बचपन में चल बसे थे। इस लिये उन की परवरिश पंजाब के अमृतसर में अपने एक रिश्तेदार के वहां हुई थी। उस घर से सिर्फ एक रूपिया ले कर (वो भी चुराकर!) बिना टिकट बम्बई आये थे, रोशनलाल।
‘रोशन’ वैसे नाम तो बडा अच्छा था; मगर दिक्कत एक ही थी। जिन के साथ काम करना शुरु किया उन शायर कमर जलालाबादी के गुरु का नाम रोशन नाथ था। अब कमर साहब अपने उस्ताद जी को ‘गुरु’ कहते थे और अपने चेले -एसीस्टन्ट- को उन्हें ‘रोशन’ कह कर बुलाना पडता था! इस मुश्किल का हल भी इशारा ने निकाला। उन्हें चाय लाते - ले जाते समय काफी लोग ‘बाबु’ कहकर बुलाते थे। वही नाम रख लिया। मगर कमर जलालाबादी तो शायर थे। इस लिये अपने सहायक को भी पूरा सम्मान देते हुए उन्होंने ‘बाबुराम’ कह कर बुलाना शुरु किया। तब से रोशनलाल ‘बाबुराम’ हुए और जब अच्छा खासा लिखने लगे तब कमर जी ने ही ‘इशारा’ तखल्लुस भी दिया।
अब ‘इशारा’ को संवाद लिखने का काम मिलने लगा। लेकिन ‘जालसाज़’ के सेट पर उन्हें एक अनोखी ड्युटी मिली..... किशोर कुमार को उन के डायलॊग रटवाने की! संवाद पर उन की पकड को देख ‘जालसाज़’ के निर्देशक अरविंद सेन ने अपनी फिल्म ‘तेरे अरमान मेरे सपने’ के डायलॊग लिखने का काम दिया। मगर वे सिर्फ संवाद लेखक भी कहां बनना चाहते थे? बंबई की फूटपाथों पर भूखे पेट सो कर आगे आने वाले बाबुराम के दिल में सेक्स वर्कर औरतों के प्रति सामाजिक दंभ के खिलाफ जो आक्रोश था, उस आग को एक वार्ता में समेटकर वे फिल्म बनाना चाहते थे।
परंतु, उस आग में हाथ डालने कोई भी निर्माता तैयार नहीं था। तब उन के दोस्त और फिल्मों के एडीटर आई. एम. कुन्नु ने एक फायनेन्सर को एक लाख रूपया लगाने के लिये सहमत कर लिया। फिल्म बनाते समय इशारा को एक ही शर्त का पालन करना था, “कुछ भी हो जाय, एक लाख के अंदर पिक्चर पूरी करनी होगी।” उन्होंने पूना से गोल्ड मेडल लेकर आई रेहाना सुलतान और अनिल धवन को लेकर ‘चेतना’ बनाई। निरंतर २६ दिन का शुटिंग एक मकान में किया. सिर्फ एक गाना “मैं तो हर मोड पर तुझ को दुंगा सदा....” अलीबाग में शुट किया।
‘चेतना’ की पब्लीसीटी में जब औरत के दो नंगे पांव और बीच में अनिल धवन के फोटो वाले पोस्टर चिपके तब पूरे देश में जैसे भूकंप सा आ गया था। फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी हुई और पिक्चर खुब चली। नये ज़माने के बेबाक निर्देशक ‘इशारा’ पहली ही फिल्म से आ पहूंचे थे! उन के नकशे कदम पर महेश भट्ट से लेकर आज के कितने ही निर्देशक फिल्में बना रहे हैं। मगर १९७० में तो इशारा को ‘पोर्न फिल्म मेकर’ तक कहा गया था। आज की फिल्मों के अलग अलग विषय और सेक्स जिस मात्रा में होता है, उस के सामने ‘चेतना’ कुछ भी नहीं लगेगी। मगर ४० साल पहले?
शायद इशारा अपने समय से बरसों आगे थे। कितने सारे कलाकारों को उन्हों ने चान्स दिया था? ‘चरित्र’ में परवीन बाबी (तथा क्रिकेटर सलीम दुरानी) को पहली बार पर्दे पर लाये। रीनारोय को ‘ज़रूरत’ की नायिका बनाया। तो शत्रुघनसिन्हा को ‘मिलाप’ में हीरो लिया; जिस में मुकेश का गाना “कई सदीयों से कई जन्मों से तेरे प्यार को तरसे मेरा मन....” था।
तो राकेश पान्डे को न सिर्फ अपनी पिक्चर में हीरो लिया; बल्कि शादी के समय दुल्हन का कन्यादान भी इशारा ने किया था। तो जया भादुडी के साथ अमिताभ बच्चन को लेकर ‘एक नज़र’ उन दिनों में बनाई, जब अमिताभ की फिल्में फ्लोप होती थी। उस का गाना? “हमीं करे कोई सुरत उन्हें बुलाने की, सुना है उन को तो आदत है भूल जाने की...” उस के अंतरे में लिखा हुआ एक शेर मजरूह सुलतानपुरी मुशायरों में भी काफी सुनाते थे. गौर फरमाईये वो अल्फाज़...
“ज़फ़ा के ज़िक्र से तुम क्यों संभल के बैठ गये,
तुम्हारी बात नहीं है, बात है ज़माने की!!
‘एक नज़र’ के और भी गाने काफी मशहूर हुए थे, जिस बात का जिक्र अमिताभ बच्चन ने भी अपनी श्रध्धांजलि में किया था. एक गाना “पत्ता पत्ता बुटा बुटा हाल हमारा जाने हैं, जाने न जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने हैं...” रफी और लता की आवाज़ में था, जो खुब चला था.
फिर तो इशारा जी ने देव आनंद और ज़िन्नत अमान को लेकर ‘प्रेमशास्त्र’ तो राजेश खन्ना तथा फराह को लेकर ‘वो फिर आयेगी’ जैसी बडे स्टार्स की फिल्में बनाई और उस समय भी सेट पर बिना जुते या चप्पल घूमने की आदत नहीं बदली!
परंतु, अपनी रफ्तार और बजट से दर्जनों फिल्में बना चूके इशारा के लिये नये मिलेनियम में बनती करोडों की लागतवाली फिल्मों से स्पर्धा करना कहां मुमकिन था? बीच में कुछ साल वे टीवी की तरफ भी मुडे थे। मगर पुराने दिनों वाली बात नहीं बन पाई थी। फिर भी हिन्दी सिनेमा की कथा-वस्तु में क्रांति लानेवाले सर्जकों का इतिहास जब भी लिखा जायेगा, तब उस में बाबुराम इशारा को याद करना ही पडेगा।
उन की एक अन्य यादगार फिल्म थी ‘कागज़ की नाव’। उस का मनहर उधास तथा आशा भोंसले का युगल गान “हर जनम में हमारा मिलन....” काफी लोकप्रिय हुआ था। उस में भी नये कलाकारों राज किरण और सारिका को लेकर समाज को एक बडा अनूठा संदेश इशारा जी ने दिया था। उस के एक संवाद में राज किरण कहते हैं, “दुनिया का कोई भी कानून या कोई भी समाज इन्सान की ज़िन्दगी से बढकर नहीं हो सकता।” इतनी भरसक संवेदनशीलता से हरे भरे थे बी.आर. इशारा जी! भगवान उन की आत्मा को शांति दें!
Very nice details on Isharaji.Enjoyed.Bansi.
ReplyDeleteThanks for your appreciation.
Deletegood informative reading about B.R.ISHARA.thanx.
ReplyDeleteThanks for your appreciation, Sir.
Deletebadhiya lekh
ReplyDeleteThanks for your appreciation.
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